14-15 अगस्त 1947 की रात को यूनियन जैक उतारकर हम आजाद हुए और उस जज्बे के साथ
बहुत दिनों तक काम भी हुआ पर बीच में 75 वर्षों में वह आजादी की कहानियाँ गायब
हो गईं. फिर से उस आजादी की याद उन युवाओं को आ जाए जो 15 वर्ष से लेकर 25
वर्षों के बीच हैं, उनके लिए 75वें वर्ष को एक अवसर के रूप में चुना गया है।
यह कोई सरकारी कार्यक्रम नहीं है अपितु यह संपूर्ण देश के जनमानस का कार्यक्रम
है। सरकार ने भारतीय जनता से इस दिन को अमृत पर्व के रूप में मनाने की अपील की
है इसलिए यह सिर्फ सरकारी कार्यक्रम नहीं है। सरकार हमारी है और हमारे लिए है
इसलिए सरकार भी अमृत पर्व के आयोजन में सम्मिलित है। लेकिन यह कार्यक्रम भारत
के लोगों का है अर्थात् बिना भाषाभेद के, बिना जातिभेद के, बिना रंगभेद के
सबका कार्यक्रम है।
यह स्वतंत्र भारत राष्ट्र का जन्मदिन तो नहीं है परंतु एक हजार वर्ष से लगातार
आक्रमण के कारण भारत ने लंबी गुलामी सही है। शासक बदलते रहे लेकिन गुलामी
बदस्तूर जारी रही, उस पूरे संघर्ष के बाद भारत के लोगों को अपना शासन मिला,
हमने अपना संविधान बनाया, अपने ढंग से निर्णय करना प्रारंभ किया। 75 वर्षों
में यह स्थिति जरूर पहुँची है कि भारत के नागरिक जो दुनिया के विभिन्न देशों
में गए, कुछ आजादी के पहले गए कुछ आजादी के बाद गए लेकिन तमाम देशों में
उन्होंने नेतृत्व की भूमिका निभाई। अब यह अलग बात है कि भारतवंशी ऋषि सुनक
ब्रिटेन देश में प्रधानमंत्री होंगे या नहीं, भारतीय मूल के एक व्यक्ति के
ब्रिटेन में प्रधानमंत्री होने की स्थिति उत्पन्न होती है, यह सामान्य बात
नहीं है। यह सिर्फ ब्रिटेन में ही तो नहीं हुआ। अमेरिका में भारतीय मूल की
महिला उपराष्ट्रपति हैं और भारतीय मूल के लोग यहाँ बड़ी संख्या में प्रभावशाली
पदों पर हैं। ढेरों देश हैं जहाँ राष्ट्राध्यक्ष वे भारतीय हुए जो भारत से
गिरमिटिया मजदूर के रूप में वहाँ गए थे। जब हम भारत की आजादी की बात कर रहे
हैं तो हम उनसे भी अपने को जोड़ रहे हैं। भारत का स्वतंत्र नागरिक होने के
नाते यह आनंद मनाने का अवसर तो है लेकिन इस बात को ध्यान में रखना है कि 15
अगस्त 1947 को पूरा भारत आजाद नहीं हो पाया था।
यह भी जानने की जरूरत है कि जो आज का तेलंगाना है, उस समय की हैदराबाद रियासत
थी। वह उसके ढाई महीने बाद आजाद हुआ और गोवा 1960 में, पांडिचेरी 1959 में,
पांडिचेरी के साथ ही दमन और दीव भी आ जाते हैं। पूरा भारत एक ही दिन में नहीं
आजाद नहीं हुआ। यानी 15 अगस्त 1947 के बाद भी आजादी की लड़ाई बंद नहीं हुई।
भारत में आजादी की लड़ाई 1960 तक चलती रही। 15 अगस्त 1947 को भारत के लोगों ने
स्वीकार कर लिया क्योंकि इस दिन बड़ा हिस्सा आजाद भी हो गया लेकिन आजादी की
लड़ाई तो 1944-1945 तक आते-आते पूरी तरह से खत्म हो गई थी और उसके बाद आजादी
की तैयारियाँ चल रही थीं, बातचीत चल रही थी, भारत को तोड़ा कैसे जाएगा, इसकी
भी योजनाएं बन रही थीं। भारत को जोड़ा कैसे जाएगा, इसके यत्न हो रहे थे और 15
अगस्त 1947 के बाद भी ये सब चलता रहा। भारत को बहुत सी असफलताएं और बहुत सारी
सफलताएं भी मिलीं। इन सबके बीच यह देश 75 वर्ष में इस स्थिति में पहुँचा है कि
हम जिसके गुलाम थे आज हम उनकी केवल आंख में आंख डालकर उनसे बात नहीं करते हैं
अपितु दबाव में भी ले आ सकते हैं। आज ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है तो इसको हमको
गर्व से मनाना चाहिए। इसको दूसरे ढंग से समझिए तब बात समझ में आएगी क्योंकि आज
से 10 वर्ष पहले तक थोड़े भारतीय जिन्हें यूएसए या कनाडा में बहुत ही हीन भावना
से देखा जाता था आज दुनिया की जितनी बड़ी कंपनियां हैं, जिनका ग्लोबल इंपैक्ट
है उन सबको चलाने वाले सीईओ भारतीय हैं। यह संयोग है कि दुनिया की 15 सबसे
बड़ी कंपनियों में उनके 9 सीईओ भारतीय हैं। यह भारतवासियों ने अपने श्रम से
अर्जित किया है। उनको भी आजाद भारत देख करके प्रसन्नता होती है, उनको भी
गौरवशाली भारत देखकर प्रसन्नता होती है। इन सबका विचार करते हुए आजादी के
75वें वर्ष में नए भारत, वैश्विक प्रभाव वाले भारत के निर्माण का संकल्प लेने
का यह पावन पर्व है।